Wednesday, June 29, 2011

फज़ा भी है जवाँ जवाँ.. - भावानुवाद

सुवासल्या दिशा दिशा, हवेत कुंद गारवा
सुरेल आसमंत हा, पुन्हा स्मरे जुनी कथा
खुणावती दुरून ते, थवे सुगंध ल्यायले
कुणास आठवून हे मनात रंग सांडले
कणाकणास ठाव प्रीत आपली असे पहा

शमूनही शमे न ही, कशी तहान आगळी
निवांतता जशी मनी, असूनही नसे खरी
मिलाफणे-दुरावणे  चटोर ऊन सावल्या

मधेच काळ थांबला, स्वत:त साधण्या दुवा
क्षणात येथ यातना, क्षणात हर्ष जाहला!
मनावरी किती किती क्षणोक्षणी बनी खुणा


मूळ गीत - "फज़ा भी है जवाँ जवाँ...."
मूळ कवी - हसन कमाल
भावानुवाद - ....रसप....
२८ जून २०११


मूळ गीत -

फज़ा भी है जवाँ जवाँ, हवा भी है रवाँ रवाँ
सुना रहा है ये समा, सुनी सुनी सी दास्ताँ ॥धृ॥

पुकारते हैं दूर से, वो काफ़िले बहार के
बिखर गए हैं रंग से किसी के इंतज़ार के
लहर-लहर के होँठ पर वफ़ा की हैं कहानीयाँ ॥१॥

बुझी मगर बुझी नहीं, न जाने कैसी प्यास है ?
करार दिल से आज भी, न दूर है न पास है
ये खेल धूप-छाँव का, ये कुरबतें, ये दुरीयाँ ॥२॥

हर एक पल को ढूँढता, हर एक पल चला गया
हर एक पल फ़िराक़ का, हर एक पल विसाल का
हरेक पल गुज़र गया बना के दिल पे इक निशाँ ॥३



- हसन कमाल  

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