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Friday, September 06, 2013

फिर मुझे कल रात नींद नहीं आयी..

इक पल भी तेरी याद भुले न भुलायी
फिर मुझे कल रात नींद नहीं आयी

बिस्तर पे लेटे हुए पंखे के चक्कर गिनता रहा
बीते दिनों की कडीयों को आपस में बुनता रहा
अपनीही धुंद में बारिश चुपचाप बरस रही थी
जैसे मेरी आंखो की बात उसने अनजाने में पढी थी
खुलकर कोई दास्ताँ न सुनी न सुनायी
............. फिर मुझे कल रात नींद नहीं आयी

चांद भी बहका हुआसा खिडकीसे झाँकता रहा
एक बादल रुका रुका मुझसे नमीं माँगता रहा
तुम होती तो उस चाँद को हथेली में छुपा लेती
और उस सहमेसे बादल को यादों की नमी देती
सरसराती दहलियों ने तुम्हारे लिए दस्तक लगायी
............. फिर मुझे कल रात नींद नहीं आयी

इक और अकेली रात यूँही खयालों में उलझी रही
जाने किस पल मुरझा गयी, अब तो याद भी नहीं
चादर की सिरवटों में कई बार लिखा था नाम तेरा
ओस संभाले हुए अपनी पलकों पर बताता हैं सवेरा
रोशनी की झूठी किरनें सारे घर में समायी
............. फिर मुझे कल रात नींद नहीं आयी

....रसप....
४ सप्टेंबर २०१३ 

Tuesday, November 06, 2012

सहर अफसोस करती है..



प्रथमच उर्दूमिश्रित हिंदीत लिहिण्याचा प्रयत्न करत आहे.. सादर करताना भीती कमी, आनंद जास्त वाटत आहे! 

सहर अफसोस करती है, अंधेरा ढल गया क्यूं ?
मेरा प्यारासा पंछी इस बस़र से उड गया क्यूं ?

किसीको दर्द मैं अपना नहीं चाहूँ बताना
न वो समझें जफ़ा से मैं वफ़ाएं कर गया क्यूँ

बहोत आये गये वाइज़ मुझे वाक़िफ़ कराने
हकीक़त जान जो पाया, दिवाना बन गया क्यूँ ?

तुझे भी आजमानी थी मेरी इकरार-ए-चाहत
तो फिर खूँ देख के मेरा तेरा दिल थम गया क्यूँ ?

नज़र में बाँध के तूफाँ चला हूँ मैं हमेशा
समंदर आँख में मेरे कभी ना भर गया क्यूँ ?

कोई तो आसमाँ होगा नज़र आऊँ जिसे मैं
जहां जाऊं मेरे जानिब विराना बस गया क्यूँ ?

....रसप....
५ नोव्हेंबर २०१२

Wednesday, October 29, 2008

रब यार मेरे

रब यार मेरे बता दे यह कैसा सिलसिला हैं
क़दमों ने उठना सीखा या रस्ता बह रहा हैं..

बस थोडा फासला था मंजिल मेरी जहां हैं
और देखा मकाम मेरा तिनकों पे तैर रहा हैं

चुनचुनके गिनने तिनके अब कारवाँ जुटा हैं
बरपाया तूने कहर यह बता दे गलती क्या हैं..

....रसप....
२९ ऑक्टोबर २००८
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