Tuesday, November 06, 2012

सहर अफसोस करती है..



प्रथमच उर्दूमिश्रित हिंदीत लिहिण्याचा प्रयत्न करत आहे.. सादर करताना भीती कमी, आनंद जास्त वाटत आहे! 

सहर अफसोस करती है, अंधेरा ढल गया क्यूं ?
मेरा प्यारासा पंछी इस बस़र से उड गया क्यूं ?

किसीको दर्द मैं अपना नहीं चाहूँ बताना
न वो समझें जफ़ा से मैं वफ़ाएं कर गया क्यूँ

बहोत आये गये वाइज़ मुझे वाक़िफ़ कराने
हकीक़त जान जो पाया, दिवाना बन गया क्यूँ ?

तुझे भी आजमानी थी मेरी इकरार-ए-चाहत
तो फिर खूँ देख के मेरा तेरा दिल थम गया क्यूँ ?

नज़र में बाँध के तूफाँ चला हूँ मैं हमेशा
समंदर आँख में मेरे कभी ना भर गया क्यूँ ?

कोई तो आसमाँ होगा नज़र आऊँ जिसे मैं
जहां जाऊं मेरे जानिब विराना बस गया क्यूँ ?

....रसप....
५ नोव्हेंबर २०१२

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