भावानुवाद क्र. २
सांगा कुणी तरी की, जावे कुठे दिवाणे
सर्वत्र यौवनाचे येथे खुले खजीने
कारागिरी पहावी ही खास ईश्वराची
एकेक चेहरा तो माझ्या मनात राहे
चोरून घेतले अन् फेकून तोडले का?
सांगून ना कळावे, हृदयास छिन्न केले
मी दर्पणात माझे प्रतिबिंब पाहता ते
म्हणले मलाच, “मूर्खा!! तू काय पाहतो रे?”
पायी हजार होती हृदये तिने चुरडली
“घे शोधुनी तुझे ते”, हासून बोलताहे!!
....रसप....
१९ मार्च २०११
सर्वत्र यौवनाचे येथे खुले खजीने
कारागिरी पहावी ही खास ईश्वराची
एकेक चेहरा तो माझ्या मनात राहे
चोरून घेतले अन् फेकून तोडले का?
सांगून ना कळावे, हृदयास छिन्न केले
मी दर्पणात माझे प्रतिबिंब पाहता ते
म्हणले मलाच, “मूर्खा!! तू काय पाहतो रे?”
पायी हजार होती हृदये तिने चुरडली
“घे शोधुनी तुझे ते”, हासून बोलताहे!!
....रसप....
१९ मार्च २०११
मूळ रचना:
कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है ।
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है ।
इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।
ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा,
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है ।
जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुँझलाकर,
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है ।
हज़ारों दिल मसल कर पाँवों से झुँझला के फ़रमाया,
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है ।
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है ।
इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।
ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा,
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है ।
जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुँझलाकर,
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है ।
हज़ारों दिल मसल कर पाँवों से झुँझला के फ़रमाया,
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है ।
- अकबर इलाहाबादी
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