पसरून विश्व अवघे तू खेळ मांडला जो
नियमांस मी तुझ्या त्या पाळून खेळला तो
सूर्यास झाकले तू काळ्या घरात एका
अन् वाटले तुला मी भांबावलोच आता
पण दीप प्रज्वलूनी अंधार जिंकला मी
माझ्या पुढ्यात तेथे आल्या अनेक वाटा
हातात सागराला घेऊन लोटले तू
मी ठेवले हसूनी त्याच्यावरीच तारू
ती चाल खास होती कोंडी करावयाची
भेदून चक्रव्यूहा शिकलो लढावयासी
केल्या चमत्कृती अन ललकारलेस मजला
मी एक चाल केली गिळले तुझ्याच वझिरा
मृत्यू पुढे करूनी तू खेळले शहाला
मी संपलोच आता हे वाटले तुला ना?
जाणून मी तुझ्या ह्या चालीस फोल केले
आत्म्यास वाचवूनी मी त्यागले तनाला
पसरून विश्व अवघे तू खेळ मांडला जो
खेळीन मीच आता नियमांस बदलुनी तो
मूळ कविता - "खुदा"
मूळ कवी - गुलजार
भावानुवाद - ....रसप....
२५ ऑगस्ट २०११
मूळ कविता -
"खुदा"
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने
काले घर में सूरज चलके,
तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे.
मैने एक चराग जलाकर रोशनी कर ली,
अपना रस्ता खोल लिया..
तुमने एक समन्दर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया,
मैने नोह की कश्ति उस के ऊपर रख दी
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा,
मैने काल को तोड़कर,
लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी खुदी को मारना चाहा
तुमने चन्द चमत्कारों से
और मेरे एक प्यादे ने चलते चलते
तेरा चांद का मोहरा मार लिया
मौत की शह देकर तुमने समझा था अब
तो मात हुई
मैने जिस्म का खोल उतारकर सौंप
दिया,
और रूह बचा ली
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब
तुम देखो बाज़ी...
- गुलज़ार
काले घर में सूरज चलके,
तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे.
मैने एक चराग जलाकर रोशनी कर ली,
अपना रस्ता खोल लिया..
तुमने एक समन्दर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया,
मैने नोह की कश्ति उस के ऊपर रख दी
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा,
मैने काल को तोड़कर,
लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी खुदी को मारना चाहा
तुमने चन्द चमत्कारों से
और मेरे एक प्यादे ने चलते चलते
तेरा चांद का मोहरा मार लिया
मौत की शह देकर तुमने समझा था अब
तो मात हुई
मैने जिस्म का खोल उतारकर सौंप
दिया,
और रूह बचा ली
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब
तुम देखो बाज़ी...
- गुलज़ार
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