Thursday, April 28, 2011

शुक्रिया ज़िन्दगी - भावानुवाद

कणभराचं तरी चांदणं लाभलं
फूल ह्या कळीचं जरा हासलं
जीवना धन्यवाद, झाले उपकार रे

एकरंगी छबी कधी शोभेल का?
वेदनेविना नाही किंमत सुखा
मोहवी मनाला ना उन्हं-सावली?
अढी ठेवण्या नसे रे वेळ कोठली!
जीवना धन्यवाद, झाले उपकार रे

नशीबाची पहा आहे ऐशी कथा
कधी जीवघेणे कधी देई मुभा
मुभा लाभता आली मनी शांतता
जीव घे जो तयावर जीव भाळला
जीवना धन्यवाद, झाले उपकार रे

-
मूळ गीत/ कविता: शुक्रिया ज़िंदगी
गीतकार/ कवी: मीर अली हुसैन
भावानुवाद: ....रसप....
२८ एप्रिल २०११



मूळ गीत:

छन के आयी तो क्या चाँदनी तो मिली
चंद दिनही सही यह कली तो खिली
शुक्रिया ज़िन्दगी, तेरी मेहरबानियाँ

सिर्फ इक रंग से तस्वीर होती कहीं
ग़म नहीं तो ख़ुशी की कीमत नहीं
धूप छाँव दोनों हैं तो दिलकश जहां
क्या शिकायत करें, फुरसत कहाँ
शुक्रिया ज़िन्दगी, तेरी मेहरबानियाँ

अपनी तक़दीर की है यह दास्ताँ
कभी क़ातिलाना, कभी मेहरबाँ
मेहरबानी जो दिल को करार आ गया
अपने क़ातिल पे भी प्यार आ गया
शुक्रिया ज़िन्दगी, तेरी मेहरबानियाँ

- मीर अली हुसैन

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