आशा आणिक स्वप्नांचा हा
जीवनातला प्रियतम तारा
मावळला तर मावळला
प्रसन्नवदनी आकाशाला पहा जरा
कितीक तारे निखळुन गेले
आवडतेही निघून गेले
सांग निखळल्या ताऱ्यासाठी
शोक कधी आकाश करे का?
झाले-गेले विसरुन जावे!
मधूर संतोषाचा प्याला
तना-मनाला रिझवुन गेला
जरी तडकला, तडकू द्यावा
मधुशालेच्या अंगणास तू पहा जरा
कितीक प्याले डगमग करती
धडपडती अन् धुळीस मिळती
पडल्यावरती कधी न उठती
तुटल्या-फुटल्या प्याल्यांसाठी
मधुशाला ना कुंथत बसते
झाले गेले विसरुन जावे
नाजुक मातीचे हे बनती
मधुघट सारे हटकुन फुटती
अल्पायुष्यच घेऊन येती
सारे प्याले तुटती फुटती
असे असूनीही मधुशालेमधे पहा
मधुघट असती, मधुप्यालेही
मादकतेने रंगलेलेही
मधुरस लुटुनी दंगलेलेही
जीव जडवितो घट प्याल्यांवर
रसप असा तो कच्चा असतो
खऱ्या रसाने जो जळतो तो
कधी न रडता, प्रसन्न दिसतो
झाले गेले विसरुन जावे!
मूळ कविता - जीवन में इक सितारा था...
मूळ कवी - हरिवंशराय बच्चन
भावानुवाद - ....रसप....
२२ सप्टेंबर २०११
मूळ कविता -
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई
मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
जिसकी ममता घट प्यालों पर
वह कच्चा पीने वाला है
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई।।
- हरिवंशराय बच्चन
Jo beet gayi so baat gayi. Fir se padh kar dil khush ho gaya! :)
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